Friday, August 26, 2011

hum bhi rishvatkhor

आज हमने उस बूढ़े आदमी को देखा जिसने दस दिन से कुछ खाया नहीं है. क्या कर सकते थे हम भी. बहुत दुखी हो गए, बहुत मनाया उसे पर वो था की मानाने को ही तैयार नहीं था, लाख समझाया पर वो तो न जाने क्या देश देश की रट लगाये हुए था .
अरे रिश्वतखोरी की शिक्षा तो हमें हमारे एजुकेशन  सिस्टम  से ही दी जाने लगी थी अब तो खून में समां गया है भ्रष्टाचार.  इतनी जल्दी कैसे मिटाएँगे.  पर वो है की मनाता ही नहीं. हमने साम, दाम, दंड, भेद सब अपना कर देख लिया.
          अब तो एक ही चारा बचा है, हम सारे लोग मिलकर एक एक के सिक्के  इकठ्ठा करते हैं. सारे पैसे ले जा के सिब्बल को दे देते है शायद उनका पेट भर जाए तो वो संसद में लोकपाल पास करवा दे. अब किसी को बुरा लगे तो लगे पर हमे तो अपना काम करवाने का यही रास्ता आता है. रिश्वत दो काम करवाओ.


यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो दिल और दिमाग से मिटाओ .

Wednesday, August 24, 2011

krishna sudama ki katha I -retold by roli

जय श्री कृष्ण

दृश्य अ :
(सुदामा अर्थात सुड अपनी पत्नी के नाराज हो जाने पर उन्हें मानाने का प्रयत्न कर रहे हैं)
पत्नी (गुस्से में)  : मिसेस गुप्ता ने पुरे दो लाख का हार पहेना था देखा आपने ? शर्म आई थोड़ी ?  आज तक कभी दर्शन भी नहीं करवाए आपने, दो लाख का हार  ला के क्या ख़ाक देंगे .
सुड (अपने दिमाग का पूरा पूरा इस्तेमाल करते हुए) :  अरे भाग्यवान तुम इतनी खूबसूरत हो की तुम्हे किसी हार वार की जरुरत ही नहीं. तुम तो वैसे ही पार्टी की शान बनी घूम रही थी.
पत्नी (खिन्न भाव में) : देखिये जी मैं  कहे देती हु ये सब बहाना  अब नहीं चलने वाला. मेरे पिताजी सच कहते थे इस फकीर के साथ तुम कभी खुश नहीं रहोगी .पर मैंने उनकी बात नहीं मानी और अब भुगत रही हु . काश मै तुम्हारे चक्कर में पड़कर तुमसे शादी न करती फिर आज मैं भी महंगे मेहेंगे गेहेने पहन कर घूम रही होती. हाय  रे किस्मत!
( यह कहकर श्रीमती सोने चली जाती हैं और बेचारे सूड जिन्हें दिन भर काम करने के बाद शाम को आकर बच्चों  को पढ़ना पड़ता था वे अपने पुत्र और पुत्री के कक्ष में प्रस्थान करते हैं )
सुड : वाह वाह मेरे प्यार की अच्छी कीमत है  "दो लाख का हार"! महारानी बोल तो ऐसे रही हैं जैसे चक्कर मैंने ही चलाया था.
पुत्री : पापा आप अकेले क्या बके जा रहे हैं.
सुड : कुछ नहीं बेटा आपकी माँ की तारीफ कर रहा था चलो आज का होमेवोर्क क्या है दिखाओ दोनों. 
पुत्र : डैड मुझे कंप्यूटर चाहिए.
सुड : क्यों?
पुत्र : स्कूल  में कंप्यूटर नहीं मिलता है.
सुड : क्यों
पुत्र : ट्वेंटी वन बच्चे हैं और कंप्यूटर सिर्फ दस. सब पर  दो दो बैठ  लेते हैं और मैं बच जाता हु.
सुड : यहाँ भी भ्रष्टाचार.
पुत्री : हाँ डैड  मेरी क्लास का भी यही हाल है. आप कंप्यूटर ला दो वरना हमे PSD कॉन्वेंट में डाल दो. भले ही वहां फीस ज्यादी है पर कंप्यूटर भी तो ज्यादा है.
पुत्र : जब तक कंप्यूटर नहीं आयेगा हम खाना नहीं खायेंगे.
सुड(खिन्न हो के ) : तुम सब मिलकर मुझे खा जाओ फिर सुकून मिलेगा.
पुत्री : डैड आपका गुस्सा यहाँ नहीं चलने वाला हमे कंप्यूटर चाहिए मतलब चाहिए. वरना हम पढेंगे भी नहीं गुड नैट.
सुड  (बहार आते हुए) : काश मेरे सर पे ये नारी नमक बिमारी मेरे पिताजी ने इतनी जल्दी न लादी होती तो आज......   अब कंप्यूटर लाऊँ या हार ऊपर से घर का लोन भी तो पूरा करना है.
 (बेचारे सुदामा अपनी किस्मत पे रोते हुए हाल में जा बैठते हैं और याद में  खो जाते हैं उन दिनों की जब वे पढाई किया करते थे. पढाई के दिनों को याद करते करते सुदामा को याद अत है पुराना मित्र कृष. बस फिर क्या था दोस्ती के नाम पे अच्छी नौकरी मांगने का ख्याल बना लेते हैं सुड. और   फिर कृष तो बहुत बड़ा बिस्नेस्मन था वो तो दे ही देता अच्छी  नौकरी.


बस फिर कल मिलते हैं सुदामा जी से और साथ ही कृष से भी.
जय श्री कृष्ण

Friday, August 19, 2011

रोली की इस छोटी सी खोली में आप सब का स्वागत है. इस गरीब खाने में आपको खाने में  थोडा मिर्च मसाला , बैठने को आरामदायक कुर्सी  और पीने को अदरक वाली चाय रोली की तरफ से एकदम मुफ्त में मिलेगी.
 जरुरी सूचना : जिन लोगो को  सोने का बहुत शौक है वो यहाँ न आयें क्यूंकि उनके लिए पहले ही बहुत सारे इंजीनियरिंग कॉलेजेस  खोल दिए गए हैं. वे वहां जा के आराम से सो सकते हैं. सुना है वहां संपूर्ण  सुविधा प्रदान की जाती है  सोने की.

दरअसल कुछ दिनों पहले मैंने भी आजमाया है